विद्ययामृतमश्नुते, अर्थात् व्यक्ति विद्या से अमृतत्व प्राप्त करता है – ईशोपनिषद् मंत्र

सत्यमेव जयते भारत सरकार द्वारा शासकीय प्रतीक-वाक्य के तौर पर अपनाया गया सूक्त है, जिससे बहुत से लोग परिचित होंगे । इसी प्रकार का एक औपनिषदिक वाक्यांश ‘विद्ययामृतमश्नुते’ है जिसके दर्शन शिक्षा के क्षेत्र में यदाकदा हो जाते हैं । कई शिक्षण संस्थाओं द्वारा इसे अपने प्रतीकों में उत्कीर्ण करके अपनाया भी गया है । वस्तुतः यहईशोपनिषद् में उपलब्ध एक मंत्र का अंतिम वाक्यांश है । मंत्र इस प्रकार है:

विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह ।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ।।

(ईशोपनिषद्, मंत्र ११)
[यः विद्यां च अविद्यां च तद् उभयं सह वेद (सः) अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्यया अमृतम् अश्नुते ।]

उक्त मंत्र का गूढार्थ समझने के लिए प्रथमतः इस बात पर ध्यान देना होगा कि यहां पर ‘विद्या’ शब्द विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । सामान्यतः किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करना विद्या अर्जित करना माना जाता है । प्राचीन भारतीय…

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“This solves everything: It is either all unreal or it is all Real. If it is unreal, you can easily renounce it; you cannot own something that is unreal. If it is all Real, then that is what you are and there is nothing to renounce.”
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